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उक्त शास्त्रोक्त कथनों से यह सिद्ध होता है कि चैत्य शब्द का सही अर्थ जिनचैत्य-जिनमन्दिर ही हो सकता है । अन्य ज्ञान या साधु अर्थ नहीं । इसके समर्थन में अन्य भी आगमशास्त्रों के पाठ मिलते हैं। देखिये
(१) श्रीज्ञातासूत्र, श्रीउपासकदशांगसूत्र तथा श्री विपाक सूत्र में- “पूर्णभद्रचेइए" पाठ आता है। वहाँ पर पूर्णभद्रयक्ष की मूर्ति व मन्दिर का अर्थ कहा है ।
(२) श्री उववाई सूत्र में "बहवे अरिहंतचेइयाई" पाठ आता है। वहाँ पर भी मूत्ति और मन्दिर अर्थ कहा गया है।
(३) श्रीअंतगडदशांग सूत्र में जहाँ यक्ष का चैत्य कहा गया है, वहाँ पर भी उसका भावार्थ मूति व मन्दिर बताया है।
(४) श्रीव्यवहारसूत्र की चूलिका में श्रीभद्रबाहु स्वामीजी ने 'द्रव्यलिंगी "चैत्य स्थापना" करने लग जायेंगे', वहाँ पर "मूत्ति की स्थापना" ऐसा अर्थ किया है।
(५) श्रीप्रश्नव्याकरण ग्रन्थ के प्रास्रव द्वार में चैत्य शब्द का अर्थ 'मूत्ति' किया है ।
मूर्ति की सिद्धि एवं मूत्तिपूजा की प्राचीनता-७४