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________________ __ जिस गाँव या नगर में जिनमन्दिर होते हैं, वहाँ पर जंगम-तीर्थरूप साधु-साध्वियों का भी आवागमन प्रायः विशेषरूप में रहता ही है । अर्थात् जहाँ जिनमन्दिर रूप स्थावर तीर्थ विद्यमान होते हैं , वहाँ पर जंगम तीर्थरूप साधु-साध्वियों के आगमन से श्रावक-श्राविका वर्ग को तो स्थावर और जंगम दोनों तीर्थों के दर्शन-वन्दन और सेवाभक्ति आदि का सुन्दर लाभ मिलता है । तदुपरान्त जिनवाणी श्रवण का भी अपूर्व लाभ मिल जाता है । इसलिये जिनमन्दिरों की अति आवश्यकता के साथसाथ उनकी उपयोगिता भी अहर्निश रहती है । (२२) 'चैत्य' शब्द का वास्तविक अर्थ इस अवसर्पिणी काल के चौबीसवें तीर्थंकर श्रमरण भगवान महावीर परमात्मा के पंचम गणधर श्रीसुधर्मा स्वामीजी के परम्परागत प्राचार्यों ने 'चैत्य' शब्द का जो अर्थ लिखा है वह सर्वज्ञदेव श्री महावीर विभु द्वारा कथित होने से वास्तविक-यथार्थ है । कलिकालसर्वज्ञ श्रीमद् हेमचन्द्र सूरीश्वरजी महाराज ने अपने 'अनेकार्थसंग्रह' नामक कोश में चैत्य शब्द का अर्थ करते हुए कहा है कि "चैत्यं जिनौकस्त बिम्बं, चैत्यो जिनसभा-तरु ।" मूत्ति की सिद्धि एवं मूर्तिपूजा की प्राचीनता-७१
SR No.002340
Book TitleMurti Ki Siddhi Evam Murti Pooja ki Prachinta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSushilsuri
PublisherSushilsuri Jain Gyanmandir
Publication Year1990
Total Pages348
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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