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________________ 8. दुर्जनों के लिये 'प्रमोघ शासन' हैं । १०. अतीत की 'पवित्र स्मृति' हैं । ११. वर्तमान के आत्मिक 'विलास भवन' हैं । १२. 'भविष्य का भोजन' हैं । १३. 'स्वर्ग की सीढ़ी हैं । १४. 'मोक्ष के स्तम्भ' हैं | १५. नरक मार्ग में 'दुर्गम पहाड़' हैं । १६. तिर्यंच गति के द्वारों के विरुद्ध 'मजबूतशक्तिशाली अर्गला' हैं । जैनधर्म - जैनशासन का ध्वज जैनमन्दिरों के शिखरों पर लहराता हुआ भी जैनमन्दिर की ओर सबको आकर्षित करता है । जिनमन्दिर का शिल्प स्थापत्य भी अनुपम होता है । जिनमन्दिर में रही हुई श्री जिनेश्वर देव की भव्य मूर्ति आत्म-स्वरूप का भान कराती है और जब हमें श्रात्मस्वरूप का भान हो जाता है तब हम उसे प्राप्त करने का सुप्रयत्न करते हैं । मूर्ति की सिद्धि एवं मूर्तिपूजा की प्राचीनता - ७०
SR No.002340
Book TitleMurti Ki Siddhi Evam Murti Pooja ki Prachinta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSushilsuri
PublisherSushilsuri Jain Gyanmandir
Publication Year1990
Total Pages348
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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