________________
मूर्ति को नहीं मानने से आत्मा आत्मिक-विकास आदि से अटक जाता है और अति नुकसान होता है ।
(१) मूत्ति को नहीं मानने वाले मूत्ति के दर्शन, वंदन एवं पूजन के लाभ से वंचित रहते हैं।
(२) मूत्ति को नहीं मानने वाले को महा-भागमशास्त्रों से तथा उनके सद्बोधों से वंचित ही रहना पड़ता है।
(३) मूर्ति को नहीं मानने वाले पवित्र आगमसूत्रों को तथा उनकी नियुक्ति, भाष्य एवं चूणि आदि को तथा ग्रन्थसर्जक ऐसे महापुरुषों को अप्रामाणिक कहते हैं और उनकी आशातना करके अपनी आत्मा को पापकर्म से अति भारी बनाते हैं, जो अत्यन्त ही नुकसानकारक है। इससे आत्मा का अधःपतन ही होता है ।
(४) मूर्ति को नहीं मानने वाले का यात्रा हेतु तीर्थ स्थानों में जाना और वहाँ पर प्रभु के दर्शन-वंदन एवं पूजन का लाभ लेना, इत्यादि सभी कार्य स्वतः ही बन्द हो जाते हैं।
(५) मूति को नहीं मानने से वीतराग विभु श्रीजिने
मूत्ति-५ .
मूत्ति की सिद्धि एवं मूत्तिपूजा की प्राचीनता-६५