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________________ नतिकारक साधन को छोटे बच्चे से लगाकर के यावत् वृद्ध तक सभी स्त्री-पुरुष सानंद अपना सकते हैं । इसलिये महाज्ञानी महापुरुषों ने कहा है कि 'इस लोक में प्रात्मकल्याण का श्रेष्ठतम अनुपम साधन वीतराग विभु श्री जिनेश्वर देव का दर्शन एवं पूजन ही है।' पारमार्थिक कल्याण-साधना रूप सच्ची आत्मोन्नति का सर्वोत्तम मार्ग जिनदर्शन-वंदन एवं पूजन ही है । (२०) मत्ति को नहीं मानने से नुकसान मुमुक्षु जीवों का अन्तिम ध्येय अहिंसा-संयम-तप रूप सद्धर्म की सुन्दर आराधना द्वारा जन्म और मरण के महान् दुःखों का सर्वथा क्षय कर मोक्ष प्राप्त करने का ही होता है। इस प्रकार के पवित्र उद्देश्य की पूर्ति के लिये अन्यान्य साधनों में वीतराग विभु श्री जिनेश्वरदेव की निर्विकारी प्रशान्त मुद्रा, ध्यानावस्थित मूत्ति एक मुख्य साधन है । इसी के निमित्त द्वारा साधारण व्यक्तियों से लेकर उच्च अध्यात्मकोटि में, प्रात्म-रमणता में रमने वाले ऐसे भव्य जीवों ने अपनी आत्मा का कल्याण किया है । ___इस बात का समर्थन हमारे आगमशास्त्र करते हैं और करेंगे। मूत्ति की सिद्धि एवं मूर्तिपूजा की प्राचीनता-६४
SR No.002340
Book TitleMurti Ki Siddhi Evam Murti Pooja ki Prachinta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSushilsuri
PublisherSushilsuri Jain Gyanmandir
Publication Year1990
Total Pages348
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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