________________
(७) वीतराग प्रभु ऐसे श्री जिनेश्वरदेव के दर्शन, वंदन एवं पूजन करने से नीच गोत्र कर्म का क्षय होता है ।
(८) वीतराग विभु ऐसे श्री जिनेश्वर देव के दर्शन एवं पूजन में तन-मन-धन की शक्ति, समय और अन्य द्रव्य का सदुपयोग करने से वीर्यान्तराय आदि अन्तराय कर्म का क्षय होता है।
इस प्रकार जिनदर्शन एवं जिनपूजन आठों कर्मों के क्षय करने का एक श्रेष्ठतम और सरलतम अनुपम साधन है । इसको अपनाने से पुण्य का बंध, देश से या सर्व से कर्म की निर्जरा तथा अन्त में प्रात्मा को शाश्वत सुख रूप मोक्ष की प्राप्ति पर्यन्त के समस्त कार्य एक साथ सिद्ध होते हैं ।
प्रतिदिन जिनदर्शन एवं जिनपूजन करने वाला आराधक महानुभाव भवोभव में जिनशासन को पाता है और उत्तरोत्तर कर्मों के क्षय द्वारा कालान्तर में वह मोक्षगामी अवश्य बनता ही है, तथा मोक्ष में शाश्वत सुख को सादि अनन्त स्थिति में पाकर सदा सचिदानंद स्वरूप में रहता है।
जिनदर्शन-वंदन एवं जिनपूजनादि जैसा अति आसान एवं सर्वसुलभ साधन अन्य नहीं है । इसलिये इस आत्मो
मूत्ति की सिद्धि एवं मूर्तिपूजा की प्राचीनता-६३