________________
(१४) मूत्ति और मन्दिर के निर्माण में भारतीय शिल्प कला को अत्यन्त-बहुत ही पोषण मिला है और आज भी मिल रहा है।
(१५) अपने द्रव्य को मूत्ति-मन्दिरादि शुभ कार्य में सद्व्यय करने का यह मार्ग प्रशस्त है। मूत्तियों और मन्दिरों के निर्माण से सर्वदा लाभ ही होता है ।
धर्मदृष्टि से यह धन-व्यय अपनी आत्मा को परमात्मापरायण बनाता है, तथा व्यवहारदृष्टि से मूर्ति और मन्दिर के रूप में विश्व में स्थायी-कायम रहता है । इतना ही नहीं किन्तु दीर्घकाल पर्यन्त अनेक जीवों का अनुपम उपकार करता हुआ बना रहता है।
(१८) प्रभु की पूजा में दानादि चार धर्मों
की आराधना वीतराग विभु श्री जिनेश्वर देव की पूजा से पुण्य का बन्ध होता है, कर्म के क्षय रूप निर्जरा भी होती है । दानशील-तप-भाव इन चार धर्मों की आराधना के सम्बन्ध में कहा है कि--
(१) वीतराग विभु श्री जिनेश्वर देव की भव्य-मूत्ति
मूत्ति की सिद्धि एवं मूर्तिपूजा की प्राचीनता-६०