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दूर करने के लिये वीतराग परमात्मा की मूर्ति-प्रतिमा का अवश्य अवलम्बन लेना परम आवश्यक है।
जड़ वस्तु के आलम्बन से साक्षात् चेतन वस्तु का आलम्बन मिल जाता है। उससे अपने कार्य की सिद्धि हो जाती है।
जिस तरह साक्षात् अाराध्य की उपासना से उपासक कार्यसिद्धि प्राप्त कर सकता है, उसी तरह स्थाप्य की मूत्ति-प्रतिमा की उपासना से भी उसकी कार्यसिद्धि हो सकती है।
__ पत्थर की गाय वगैरह उन वस्तु-पदार्थों को पहचानने के लिए उपयोगी भले ही हों, परन्तु दूध देने के लिये तो वह निरर्थक ही रहती है। पत्थर की गाय दूध भले ही न दे लेकिन उससे साक्षात् गाय की पहचान अवश्य होती है। मूर्ति एवं उसके पूजन से प्रभु के गुणों को तो प्रकट किया ही जा सकता है ।
__ जिस तरह उपास्य का मूल पिंड तथा उसका आकार निमित्त रूप बनता है, उसी तरह उपास्य की स्थापना भी निमित्त रूप हो सकती है। उपास्य की अनुपस्थिति में उपास्य की स्थापना की उपासना यानी सेवा-भक्ति
मूत्ति की सिद्धि एवं मूर्तिपूजा की प्राचीनता-५५