________________
पास चला आया । शीघ्र ही पाण्डवों ने इस प्रकार विचित्र रीति से कुत्ते को मारने वाले को ढूढा। कुछ आगे दूर जाने पर देखा कि-एकलव्य अपने सामने मिट्टी की एक मूत्ति को रखकर धनुर्विद्या सीख रहा है । तब अर्जुन ने उस एकलव्य भील से पूछा कि तुमने यह अद्भुत और असाधारण शब्दभेदी बाण विद्या किसके पास सीखी है ? भील ने उत्तर दिया कि-गुरु द्रोणाचार्य से यह विद्या मैंने सीखी है।
___ यह बात सुनकर तत्काल राजकुमार अर्जुन ईर्ष्या से जलता हुआ गुरु द्रोणाचार्यजी के पास पहुँचा और बोला कि-'गुरुदेव ! आपने यह क्या किया? मुझे श्रेष्ठ धनुर्धारी बनाने का वचन देकर भी आपने उस वचन का भंग किया है । इतना ही नहीं, किन्तु एक अनपढ़ भील को असाधारण धनुर्विद्या सिखाकर आपने मेरे साथ अन्याय किया है।'
यह सुनकर खुद गुरु द्रोणाचार्य भी एकदम आश्चर्य पूर्वक विचार में पड़ गये । 'अरे ! मैंने तो पूर्व में भी इस भील को विद्या सिखाने से इन्कार कर दिया था। लेकिन फिर भी विद्या सिखाने की बात क्यों सामने आई ?'
इस बात की जानकारी के लिये गुरु और शिष्य दोनों
मूत्ति की सिद्धि एवं मूर्तिपूजा की प्राचीनता-५२