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________________ स्मरण से उनके गुण-स्मरण से उनके चरित्रों के श्रवण से, उनकी भक्ति से तथा उनकी प्राज्ञानों के पालन से होती है; उसी तरह उनके आकार-आकृति की तथा उनकी मूत्ति-प्रतिमा या प्रतिबिम्ब की भक्ति से भी होती है । यह कथन सत्य है, इसलिये सर्वदा स्वीकार्य है। सर्वज्ञदेव श्री वीतराग विभु की आराधना एवं उपासना मुख्यपने उनकी मूर्ति के द्वारा ही सम्भव है । इसके बिना अन्य अनेक उपायों से भी वह सुशक्य नहीं है। यह बात भी कभी भूलने योग्य नहीं है । यदि प्रभु का नाम कल्याणकारी है, तो फिर यह नाम जिस स्वरूप का है वह स्वरूप भी अधिक कल्याण कारी है। - जैसे नाम दो प्रकार के होते हैं, वैसे ही स्थापना भी दो प्रकार की होती है। जिस तरह मूल वस्तु स्थापना से पहचानी जाती है, इसी तरह स्थापना वस्तु भी आकार से ही पहचानी जाती है। दोनों की पहचान आकार मात्र से होने के कारण दोनों के द्वारा बोध कराने का कार्य समान रूप से हो ही जाता है। मूर्ति की सिद्धि एवं मूर्तिपूजा की प्राचीनता-४३
SR No.002340
Book TitleMurti Ki Siddhi Evam Murti Pooja ki Prachinta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSushilsuri
PublisherSushilsuri Jain Gyanmandir
Publication Year1990
Total Pages348
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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