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भी नहीं होता है । प्रत्येक वस्तु - पदार्थ की स्थिति कम-सेकम चार प्रकार की होती है । नाम, प्रकृति - श्राकार, पिण्ड तथा वर्त्तमान अवस्था । प्रस्तुत में 'श्री अरिहन्त परमात्मा' हैं। इनमें यह चारों प्रकार की स्थिति कैसे है, इस सम्बन्ध में कलिकालसर्वज्ञ श्रीमद् हेमचन्द्रसूरीश्वरजी म. श्री ने 'सकलार्हत् स्तोत्र' में कहा है कि
"नामाकृतिद्रव्यभावैः, क्षेत्रे काले च सर्वस्मिन्नर्हतः
पुनतस्त्रिजगज्जनम् । समुपास्महे ॥ | १ || "
अर्थ- 'सर्व कालों में तथा सभी क्षेत्रों में 'नाम - श्राकृतिद्रव्य और भाव' इन चारों स्वरूपों द्वारा तीनों जगत् के लोगों को पवित्र करने वाले श्री अरिहंतों की हम उपासना करते हैं ।'
इस श्लोक से यह स्पष्ट हो जाता है कि श्री अरिहंत भगवन्तों की प्रतिमाएँ और उनकी पूजा प्राजकल की नहीं है, किन्तु सर्व कालों में और सर्व क्षेत्रों में सदा की है ।
इससे यह बात सिद्ध होती है कि श्री अरिहन्त भगवन्तों के नामादि चारों निक्षेप उपास्य हैं अर्थात् वन्दनीय एवं पूजनीय अवश्य हैं ।
इन चारों में से एक भी निक्षेप की उपेक्षा सम्यक्त्व
मूर्ति की सिद्धि एवं मूर्तिपूजा की प्राचीनता - ४१