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________________ यह सब अमूर्त की पूजा भी मूर्ति के माध्यम से होती है । विश्व में कोई भी धर्म, मत, पंथ, सम्प्रदाय, समाज, जाति तथा व्यक्ति मूत्तिपूजा से अलग नहीं रह सकता । चाहे प्रत्यक्ष रूप में मानो या अप्रत्यक्ष रूप में मानो, किन्तु समस्त संसार मूर्तिपूजा को मानता अवश्य ही है। इस विश्व में मूत्तिपूजकों ने विश्व की जनता पर जितना उपकार किया है, उतना ही मूतिविरोधियों ने उपकार किया है। विश्व में मूत्ति-प्रतिमा आत्मकल्याणकारक है, इतना ही नहीं किन्तु विश्व के सभी जीवों की सच्ची उन्नति का परम साधन है। इसका विरोध करना आत्म-अहित का, अधःपतन का कारण है । इसलिये प्रत्येक आत्मार्थी जीव को आत्मिकविकास के लिए यह चाहिए कि वह मूत्तिपूजा में विश्वास रखते हुए सच्चा उपासक बनकर विश्व में स्व और पर कल्याण का साधन करे । (१५) मत्तिपूजा की शाश्वतता एवं पारमाथिक साधकता श्री सिद्धान्त-शास्त्रवेदी समस्त महापुरुषों ने फरमाया मूत्ति की सिद्धि एवं मूर्तिपूजा की प्राचीनता-३६
SR No.002340
Book TitleMurti Ki Siddhi Evam Murti Pooja ki Prachinta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSushilsuri
PublisherSushilsuri Jain Gyanmandir
Publication Year1990
Total Pages348
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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