________________
(२) ईसाई धर्म-मूर्तिपूजा नहीं मानने वाले ईसाई भी सूली पर लटकती हुई ईसामसीह की मूत्ति और क्रॉस अपने चर्च में-गिरजाघरों में स्थापित कर उन्हें पूज्यभाव से देखते हैं, द्रव्य और भाव से उनकी पूजा करते हैं तथा पुष्प-हार चढ़ाते हैं । आज भी यूरोपप्रदेश की भूमि में से पाँच-पाँच हजार वर्षों की अनेक देवी-देवताओं की प्राचीन मूर्तियाँ मिलती हैं । इतना ही नहीं किन्तु यूरोप के प्रान्तों में किसी-न-किसी प्रकार से मूर्तिपूजा की जाती है। क्या यह मूर्तिपूजा नहीं मानी जायगी ? मूर्तिपूजा का ही यह रूपान्तर है।
(३) पारसी धर्म-पारसी अग्नि को देवता मानते हैं। इतना ही नहीं सूर्यदेव की भी पूजा करते हैं। यह मूत्तिपूजा का परिवर्तित स्वरूप है । . (४) बौद्ध धर्म-इस धर्म के मठ स्थान-स्थान पर देशविदेश में विद्यमान हैं । इस धर्म के अनुयायी भी अपने मठों में श्री गौतमबुद्ध की मूति रखते हैं । आज भी श्री गौतमबुद्ध की अनेक प्राचीन मूत्तियाँ पाई जाती हैं। इससे यह सिद्ध होता है कि बौद्धमत में भी मूत्ति-प्रतिमा श्रद्धा का केन्द्र बनी है।
(५) सिख धर्म-इस धर्म की मान्यता वाले अपने .. मूत्ति की सिद्धि एवं मूर्तिपूजा की प्राचीनता-३७