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भो मूत्ति को एवं मूर्तिपूजा को मानना ही पड़ता है। इसके उदाहरण
(१) इस्लाम धर्म:-मूत्ति एवं मूर्तिपूजा का सर्वप्रथप विरोध करने वाले मुस्लिम मत के संस्थापक हजरत मुहम्मद सा. थे । किन्तु समयान्तर में उनके अनुयायी भी अपनो मस्जिदों में पीरों की प्राकृतियाँ बनाकर उन्हें पुष्पधूपादिक से पूजते हैं। मोहर्रम के दिनों में ताजिया बनाकर उनके आगे रोना-पीटना भी करते हैं तथा यात्रा के लिये अपने माने हुए धर्मतीर्थ मक्का-मदीना जाते हैं। वहाँ पर एक गोल काले पत्थर को चुम्बन करते हैं तथा ऐसा मानते हैं कि इस पत्थर का चुम्बन करने से अपने कृत कर्मों का विनाश हो जाता है। क्या यह मूर्तिपूजा नहीं कही जाती ? अवश्यमेव कही जाती है ।
तदुपरान्त मुस्लिम धर्म के अनुयायी कहते हैं कि जहाँ पर दो मीनारों का दृश्य दिखाई देता है और भीतर में तीन पगथीएँ होते हैं, वही हमारी मस्जिद है और वही हमारा धर्मस्थानक है।
___ यह सब चेतन है कि जड़ है ? कहना ही पड़ेगा कि जड़ ही है।
मूर्ति की सिद्धि एवं मूर्तिपूजा की प्राचीनता-३६