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आभूषणादि तथा अपना शरीर-शस्त्र-मुकाम-पुस्तकादि सभी अपने-अपने आकार-प्राकृति से पहचाने जाते हैं ।
(३) अक्षर का ज्ञान, अंक का ज्ञान तथा चित्रों आदि का ज्ञान आकार-प्राकृति आदि से ही सबको मालूम पड़ता है। जैसे
१. अ आ इत्यादि चौदह स्वरों का तथा क ख ग इत्यादि तैंतीस व्यंजनों का ज्ञान ।
२. एक, दो, तीन इत्यादि अंक-संख्या का ज्ञान ।
३. मूत्ति-प्रतिमा तथा चित्रों का ज्ञान । यह सब प्राकृति से ही मालूम पड़ता है।
. (४) अभाव पदार्थ का ज्ञान भी आकार से ही होता है। जैसे-पच्चीस में से पच्चीस जावे तो शेष क्या रहे ? उसका जवाब यही मिलेगा कि कुछ नहीं। रहा । तो भी उसकी निशानी २५-२५ =०० यह आकार हो बतायेगा।
लोक में चेतनवन्त व्यक्ति का अपना कार्य जड़ वस्तु के संयोग-सम्बन्ध से ही होता है।
मूति एवं मूर्तिपूजा का सख्त विरोध करने वाले को . मूर्ति की सिद्धि एवं मूर्तिपूजा की प्राचीनता-३५