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उपासक-भक्त का तो लक्ष्य यही रहता है कि इस वीतराग विभु-प्रभु की मूर्ति द्वारा ही मैं वीतराग विभु के वास्तविक स्वरूप का दर्शन-वन्दन-पूजन-ध्यान-चिन्तन करूँ।
___ वीतराग प्रभु के प्रति अनुपम प्रात्मश्रद्धा, स्नेह-प्रेम और भक्ति, सद्धर्म पर दृढ़ श्रद्धा और पूर्ण विश्वास तथा ईश्वरत्व के विषय में अस्तित्व-बुद्धि रखना यही उनका मुख्य ध्येय होता है। अतः यह सिद्ध है कि विश्व में सदाचार, शान्ति, सुख और समृद्धि का कारण मूर्तिपूजा ही है।
जब हम धार्मिक सिद्धान्तों की ओर दृष्टिपात करते हैं तब भी हमें मूत्ति-प्रतिमा की परमावश्यकता प्रतीत होती है। कारण कि वीतराग परमेश्वर परमात्मा की उपासनादि करना यही सद्धर्म का एक मुख्य अंग है। इतना ही नहीं किन्तु उसकी सिद्धि के लिये मूर्ति-प्रतिमा की अवश्य ही अति आवश्यकता है। क्योंकि निराकार परमेश्वर की उपासना मूर्ति-प्रतिमा के बिना नहीं हो सकती है । यदि कोई कहे कि उपासना के लिये जड़ रूप मूत्तिप्रतिमा की क्या आवश्यकता है ? हम तो केवल परमेश्वर के गुणों की उपासना कर सकते हैं ? ऐसा कहना भी उचित
मूत्ति की सिद्धि एवं मूर्तिपूजा की प्राचीनता-१८