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हो अथवा वैज्ञानिक, कोई भी कार्य हो, किन्तु मूत्ति एवं आकृति-आकार को माने बिना न तो इतना ज्ञान हो सकता है और न किसी का कार्य-काम भी चल सकता है।
___ इसलिये मूत्ति एवं प्राकृति-प्राकार को मानने का सिद्धान्त विश्व व्यापक है। जिस तरह सोना और उसका पोला वर्ण-रंग अभिन्न है, उसी तरह विश्व और मूत्ति अभिन्न है, अर्थात्-जैसे सुवर्ण और उसमें विद्यमान पीलेपन को कभी अलग नहीं किया जा सकता है, वैसे ही विश्व से उसके आकार की मूत्ति को भी अलग नहीं किया जा सकता।
(८) पूजा शब्द का अर्थमूत्ति शब्द के साथ लगे हुए 'पूजा' शब्द का भी व्युत्पत्ति-अर्थ इस प्रकार है-'पूज्-पूजायाम्', अर्थात् पूज् धातु पूजन अर्थ में है। अतः पूज्यते-मनसा वाचा फूल-फलधूप-दीप-जल-गन्धाक्षतादिना सत्कारविशेषो विधीयतेऽनेनेति पूजनम्, पूजनमेव पूजा'। अर्थात्-मन से, वचन से और सामयिक फूल-फल-धूप-दीप-गन्ध-जल-अक्षत-नैवेद्य इत्यादि सामग्री के द्वारा इष्टदेव की मूत्ति का जो विशेष
मूत्ति की सिद्धि एवं मूर्तिपूजा की प्राचीनता-१५