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निक्षेपों से पूजनीक ऐसी वीतराग विभु-प्रभु की मूत्तिप्रतिमाजी को हमारा हरदम कोटि-कोटिशः वन्दननमस्कार हो।
(४) साकार और निराकार विश्व में साकार और निराकार दोनों ही पदार्थ हैं । परमात्मा विश्वव्यापक है इसलिये वे विभु, प्रभु, परमेश्वर कहलाते हैं।
परमात्मा का स्वरूप निराकार है। वे निराकार होते हुए भी प्रकार से ही पाये जाते हैं। क्योंकि विश्व में किसी प्रकार की भी निराकार वस्तु-पदार्थ प्राकृति
आकार से ही उपलब्ध होती है। निराकार ऐसे विश्वव्यापक विभु-प्रभु-परमेश्वर को भेंटने के लिये और उनकी मूर्ति-प्रतिमा के दर्शन-वन्दन-पूजन करने के लिये मन्दिर में जाना होता है। जैसे-पुष्प में विद्यमान 'सौरभ-सुगन्ध' निराकार है। उसको पाने के लिये आकारवंत पुष्प-फूल के पास जाना ही पड़ेगा। वैसे ही निराकार परमात्मा को पाने के लिये प्राकृति-आकार का अवलम्बन अति-आवश्यक है। बिना प्राकृति-पाकार निराकार की प्राप्ति होना असम्भव है । इसलिये कहा जाता है कि
मूत्ति की सिद्धि एवं मूर्तिपूजा की प्राचीनता-११