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(५) मूति-प्रतिमाजी का विरोध करने वाले ऐसे साधु-संत भी अपने गुरु के फोटो और खुद अपने फोटो की भी प्रभावना बँटवाते हैं। इतना ही नहीं, अब तो आगे बढ़कर गुरुमन्दिर एवं स्तूप आदि का निर्माण कार्य भी उपदेश एवं प्ररणा द्वारा करवाते हैं।
उनको यह सब तो मंजूर है, लेकिन भगवान की मूत्ति-प्रतिमा-फोटो इत्यादि नामंजूर है। क्योंकि वह जड़ है। इस तरह कहने वाला ही जड़ जैसा होगा। उन्हें अपने कदाग्रह को छोड़कर स्वयंबुद्धि से विचारना चाहिये कि-जैसे अपने सामने दो कागज पड़े हैं। एक कोरे कागज के अलावा दूसरे कागज पर सरकार की टकसाल द्वारा एक, सौ, हजार रुपये की मोहर छाप पड़ी है तो उसकी कीमत कितनी बढ़ जाती है। वैसे ही जब कुशल कारीगरों द्वारा पत्थर इत्यादि से बनाई हुई मूत्ति-प्रतिमा पर आचार्य महाराज आदि द्वारा अंजनशलाका-प्राणप्रतिष्ठा विधि से प्राण पूरे जाते हैं तब वह मूत्ति-प्रतिमाजी साक्षात् परमात्मा स्वरूप-दिव्यरूप धारण करती है ।
वह मूत्ति-प्रतिमा प्रतिदिन वन्दनीय एवं पूजनीय बनती है। नाम, स्थापना, द्रव्य और भाव, इन चारों
मूत्ति की सिद्धि एवं मूर्तिपूजा की प्राचीनता-१०