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परमपूज्य आचार्यदेव श्रीमद् विजय सुशील सूरीश्वरजी म. सा. कृत श्री वर्द्धमान तप की ५६ वीं अोली की पूर्णाहुति के पारणा के प्रसंग पर अपने घर पूज्यपाद प्राचार्य म. सा. के पुनीत पगलियाँ कराने हेतु विशेष बोली बोलकर लाभ लेने वाले श्रीमान् मोतीलालजी कुन्दनमलजी अम्बावत के घर पर पूज्यपाद आचार्य म. सा.
आदि चतुर्विध संघ समेत बैन्ड युक्त पधारे। वहाँ पर ज्ञानपूजन और मांगलिक के बाद संघपूजा हुई।
उसी दिन व्याख्यान में पूज्यपाद आचार्य म. श्री ने श्रीमान् मोहनराजजी अम्बावत तथा श्रीमान् हिम्मतमलजी आदि को परस्पर मिच्छामि दुक्कडं' क्षमापन करवाने से शान्ति हो गई। उससे संघ में हर्ष के वातावरण के साथ सबके प्रानन्द में अभिवृद्धि हुई। प्रतिदिन व्याख्यान के साथ पूजा-प्रभावना, प्रांगी-रोशनी तथा रात को भावना का कार्यक्रम चालू रहा ।
१२९ श्रावण (भादरवा) वद ५ सोमवार दिनांक २८-८-८९ के दिन श्रीमान् चम्पालालजी गुलाबचन्दजी के घर पर परमपूज्य आचार्यदेव आदि चतुर्विध संघ समेत स्वागतपूर्वक पधारे। वहाँ पर ज्ञानपूजन, दीक्षा को प्रतिज्ञा एवं मंगलप्रवचन के पश्चात् संघ पूजा हुई। मूत्ति-१६ मूत्ति की सिद्धि एवं मूर्तिपूजा की प्राचीनता-२८६