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ऐसी बातें करने वाले और मूर्ति प्रतिमा को प्रचेतन तथा निरर्थक मानने वाले महानुभाव जरा गहराई से सोचेंसत्य को स्वीकारें और आत्मोन्नतिकारक सन्मार्ग तरफ प्रयाण करें । भगवान की मूर्ति प्रतिमा अचेतन और निरर्थक होने से कुछ भी लाभ नहीं कर सकती है, तो संसारवर्द्धक ऐसे सिनेमा टी.वी. इत्यादिक में जो-जो दृश्य आते हैं वे भी किसी प्रकार का कुछ भी नुकसान नहीं कर सकेंगे। क्योंकि वे भी अचेतन द्रव्य हैं । यदि जो वे अचेतन द्रव्य भी अपनी आत्मा को कामी - विषयी विकारी और खूनी - हिंसक इत्यादि बना सकते हैं, तो वीतराग विभु की मूर्ति प्रतिमा भी अपनी आत्मा को अकामी - प्रविषयी, निर्विकारी और खूनी अहिंसक इत्यादि अवश्य बना सकती है । अचेतन श्राकृति प्रकार का विकारी दृश्य चैतन्यवंत विकारी व्यक्ति को बरबाद कर सकता है और अधोगति में ले जाता है तथा अचेतन प्रकृति प्रकार का निर्विकारी दृश्य निर्विकारी व्यक्ति को उन्नत बनाता है और ऊर्ध्वगति में ले जाता है ।
अचेतन वस्तु-पदार्थों में क्या ताकत और कितनी शक्ति है, वह तो प्रायः सभी लोक जानते ही हैं । यह बात तो सारे संसार में सर्वत्र प्रसिद्ध है । शराब - मदिरा पीने
मूर्ति की सिद्धि एवं मूर्तिपूजा की प्राचीनता