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है। अतएव मूर्तिमान् द्रव्य अनादि और अनन्त हैं। जब मूर्त द्रव्य अनादि है तो मूत्ति को भी अनादिकालीन मानना ही पड़ेगा। इस प्रकार प्राकृति-आकार को तथा मूत्तिप्रतिमा को मानने का इतिहास विश्व की विद्यमानताअस्तिता तक सर्वकाल के लिये सर्जित ही है। इसमें संदेह-संशय करने की या रखने की आवश्यकता नहीं है।
(३) जड़ और चेतन विश्व में जड़ और चेतन दोनों ही पदार्थों की विद्यमानता है। सदा ही जड़ पदार्थ जड़ रूप में रहता है और
चेतन पदार्थ चेतन रूप में। अर्थात् न जड़ कभी चेतन हो . सकता है और न चेतन कभी जड़ ।
"पत्थरप्रमुख से बनी हुई मूत्ति-प्रतिमा को भगवान कहना और भगवान स्वरूप मानना गलत ही है। कारण कि वह तो मात्र पत्थरप्रमुख की एक जड़ प्राकृति है, अर्थात् अचेतन द्रव्य है। शिल्पी-कारीगर द्वारा बनाया हुआ एक प्रकार का खिलौना-रमकड़ा है। उससे चेतन स्वरूप आत्मद्रव्य को कुछ भी लाभ नहीं हो सकता है, तो फिर मूत्ति-प्रतिमा क्यों मानना और पूजना ?"
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मूत्ति की सिद्धि एवं मूर्तिपूजा की प्राचीनता-७