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स्थापना कर सभी ने ज्ञान की स्तुति आदि की। बाद में ज्ञानपूजन, तीर्थयात्रा-संघ निकालने की प्रतिज्ञा एवं मंगलप्रवचन होने के पश्चात् संघपूजा हुई। रात को प्रभु-भक्ति का कार्यक्रम रहा।
[ ३ ] * पू. श्री भगवतीसूत्र का तथा
श्री विक्रमचरित्र का प्रारम्भ * आषाढ़ (श्रावण) वद २ गुरुवार दिनांक २०-७-८६ के दिन प्रातः अपने घर से पूज्य श्री भगवतीसूत्र को हाथी, बैन्डयुक्त जुलूस द्वारा श्री पोरवाल भवन में लाकर चतुर्विध संघ के समक्ष परम गुरुदेव पूज्यपाद प्राचार्य म. सा. को वहोराया। 'श्रीविक्रमचरित्र' आदेश लेने वाले श्रीमान् नेमिचन्दजी धनराजजी ने वहोराया । पूज्य श्री भगवतोसूत्र की प्रथम पूजन गिन्नी से श्रीमान् कालूरामजी जसराजजी ने की। शेष चार पूजन रूपानाणा से भिन्न-भिन्न चार सद्गृहस्थों ने क्रमश: की। सकल संघ ने भी रूपानाणा से पूजन की। बाद में पूज्यपाद प्राचार्य म. सा. ने 'पूज्य श्री भगवती सूत्र' का वांचन प्रारम्भ किया तथा 'श्रीविक्रम चरित्र' का प्रारम्भ पूज्य श्री जिनोत्तम विजयजी म. ने किया ।
मूत्ति की सिद्धि एवं मृत्तिपूजा की प्राचीनता-२८६