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परिणामां की लहेर चढ़े जद, कैसा आवे भाव ; प्राडबांधे सुरतणो सरे, यो पूजा परभाव ।
आज पूजा के मांहि० ॥५॥
नाम लहुं प्रभु तुम तणु सरे, अशुभ कर्म जाय दूर; बंध होय शुभ नाम को सरे, पामे सुख भरपूर ।
आज पूजा के मांहि० ॥६॥
बन्दणा करतां गोत्रकर्म को, होय नीच को नाश; ऊँच गोत्र पदवी मिले सरे, फिर रहु तुमारे पास ।
आज पूजा के माहि० ॥७॥
द्रव्य चढ़ावे शक्ति फोरवें, इम तूटे अन्तराय; भाग्य उदय हो जेहनां सरे, प्रभु की भक्ति कराय ।
आज पूजा के मांहि० ॥८॥ अशुभ कर्म को नाश पूजा में, शुभ को बंध ज थावे; द्रव्य क्रियासुं भाव आवे जद, वेगो मुक्ति सिधावे ।
आज पूजा के मांहि० ॥६॥
स्वरूप हिंसा द्रव्य-पूजा में, देखी चमके भोला; भक्ति नफो पिछाणे नाहिं, बण रया भर्मका गोला ।
आज पूजा के मांहि० ॥ १० ॥ मूत्ति की सिद्धि एवं मूर्तिपूजा की प्राचीनता-२७८