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पाणी मां सुं काढे साध्वी, कहो कैसी हिंसा थावे; आज्ञा धर्म बतायो जिनवर, यूँ पूजा में भावे ।
आज पूजा के मांहि० ॥ ११ ॥ थोड़ो पाणी मच्छियां घेरी, कोइ करुणा दिल लावे; जाय नांखे दरियाव में सरे, पाप बिना पुन थावें ।
आज पूजा के मांहि० ॥ १२ ॥ जे आसव्वा ते परिसव्वा, शुभ जोगे संवर होय; आचारांग भगवति माहे, पाठ काढल्यो जोय ।
आज पूजा के मांहि० ॥ १३ ॥ रावण गोत्र तीर्थंकर बांध्यो, केइ श्रावक पूजा कीनी; आठ कर्म की होय निर्जरा, भगवन्त आज्ञा दीनी ।
आज पूजा के मांहि० ॥ १४ ॥ दान-शीयल-तप-भावना भावो, पूजा खूब रचावो; नरभव केरो लाहो लीजे, फेर गर्भ नहिं प्रावो ।
आज पूजा के मांहि० ॥ १५ ॥ साल बोहोतेर तीर्थ उशीया, गयवर की अरदास; वीर प्रभु से वीनती सरे, मैं रहूँ तुमारे पास ।
आज पूजा के माहि० ॥ १६ ॥ ॥ इति सम्पूर्णम् ।। मूत्ति की सिद्धि एवं मूर्तिपूजा की प्राचीनता-२७६