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________________ * जिनस्तवन * [कर्ता-उपकेशगच्छीय आचार्यश्री देवगुप्तसूरिजी (ज्ञानसुन्दरजी)] [गोपीचन्द लड़का की-देशी] आज पूजा के मांहि लाठकर्म जावे तूट रे । (पूजा०) ए टेक । चैत्यवन्दन-स्तुती करतां, ज्ञानावर्णी तूटे; दर्शन करतां भावे भावना, दर्शनावर्णी छूटे । श्राज पूजा के मांहि० ॥१॥ प्राणिभूत जीवसत्त्व की, करुणा घट में लावे; . असातावेदनी जाय मूल सें, साता को बंध थावे । आज पूजा के मांहि० ॥२॥ आठ कर्म में नायक कहिजे, मोह को मोटो फंद; वीतराग की भावे भावना, कटे कर्म को कंद । आज पूजा के मांहि० ॥३॥ योग अवस्था ध्यावतां सरे, चारित्र मोह को नाश; ध्यावो सिद्ध की अवस्था सरे, तूटे दर्शन मोहनी खास । आज पूजा के मांहि० ॥ ४ ॥ 'मूत्ति की सिद्धि एवं मूर्तिपूजा की प्राचीनता-२७७
SR No.002340
Book TitleMurti Ki Siddhi Evam Murti Pooja ki Prachinta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSushilsuri
PublisherSushilsuri Jain Gyanmandir
Publication Year1990
Total Pages348
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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