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________________ पांचमे वर्गे द्वारका नगरी, बारे श्रावकरी जोड़जी। चंपानीपरे नगरी सोभे, श्रावक पूजी होड़ाहोड़जी ॥ प्रतिमा० ॥ १८ ॥ दशमे अध्ययने गौतमस्वामी, तीर्थ अष्टापद जायजी । उत्तराधीन ठारमे देखो, कह्यो उदाईरायजी ।। प्रतिमा० ॥ १६ ॥ प्रात प्रभावतीराणी नाटक कोनो, जिनभक्ति में रागजी । गुणतीस अध्ययने चैत्यवन्द को फलभाष्यो वीतरागजी ।। प्रतिमा० ॥२०॥ दशवकालिक सिइ-झंभव भट्ट, प्रतिमाथी प्रतिबोधजी। जाणग भवियसरीर निक्षेपा, अणुयोग द्वारल्यो सोधजी ।। प्रतिमा० ॥ २१ ॥ स्थुभ कह्यो श्रीनन्दीसूत्रे, मुनिसुव्रत विशालामायजी । व्यवहारसूत्रे बालोवणा लेवे, मुनि प्रतिमा पासे जायजी ॥ प्रतिमा० ॥ २२ ॥ निसीथकल्पदशा श्रुतरखंधे, नगरियां को अधिकारजी। 'चंपानोपरे मंदिर सोभे, वीतराग वचन ल्यो धारजी । प्रतिमा० ॥ २३ ॥ मूत्ति-१८ . मूर्ति की सिद्धि एवं मूर्तिपूजा की प्राचीनता-२७३
SR No.002340
Book TitleMurti Ki Siddhi Evam Murti Pooja ki Prachinta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSushilsuri
PublisherSushilsuri Jain Gyanmandir
Publication Year1990
Total Pages348
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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