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शतक तीजो उद्देसो पहेलो, भगवती में सारजी। चमरइन्द्र सरणा लइ जावे, अरिहन्त बिम्ब अणगारजी ॥
प्रतिमा० ॥ ६ ॥
सास्वति प्रसास्वति प्रतिमा वन्दे, दुगचारण मुनिरायजी । शतक वीस उद्देसे नवमे, बहुवचन कह्यो जिनरायजी ॥
प्रतिमा० ॥ ७ ॥
सतीद्रौपदी प्रतिमा पूजी, ज्ञातासूत्र मुझारजी। आणंद श्रावक अङ्ग सातमे सुण तेहन अधिकारजी ॥
प्रतिमा० ॥८॥
अन्यतीर्थी ने उणरी प्रतिमा, नहि वन्दू जावत् जीवजी । स्वतीर्थी री प्रतिमा वन्दी ज्यारी सेठी समकितनींवजी ॥
प्रतिमा० ॥६॥
अन्तगढ ने अणुत्तरोवाइ, प्रथम उपांगरी साखजी । अरिहन्त चैत्ये नगरियां शोभे, श्री जिनमुख से भाषजी ।
प्रतिमा० ॥ १० ॥ प्रश्न व्याकरण पहले संवर, पूजा अहिंसा नामजी । प्रतिमाव्यावच्च त्रीजे संवर, करे मुनि गुणधामजी ।
प्रतिमा० ॥ ११ ॥
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मूत्ति की सिद्धि एवं मूत्तिपूजा की प्राचीनता-२७१