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श्री प्रतिमा-छत्रीसी
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[कर्ता-उपकेशगच्छोय स्व. प्राचार्य श्री देवगुप्तसुरिजी (ज्ञानसुन्दरजी) महाराज]
॥ दूहा ॥ अरिहंतसिद्धने प्रायरिया, उवझाया अरणगार । पंचपरमेष्ठी एहने, वन्दू वारंवार ॥१॥ चारनिक्षेपा जिनतणा, सूत्रा में वन्दनीक । भोला भेद जाणे नहिं, जिन आगम प्रत्यनीक ॥२॥ बत्रीस सूत्र के मायने, प्रतिमा को अधिकार । सावधान थई सांभलो, पामो समकित सार ॥३॥ समकित बिन चारित्र नहि, चारित्र बिरण नहिं मोक्ष । कष्ट लोच किरियाकरी, जन्म गमायो फोक ॥४॥
मूत्ति की सिद्धि एवं मूर्तिपूजा की प्राचीनता-२६६