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भावार्थ-नाम, प्राकृति, द्रव्य और भाव की भावनाओं से भावित, शास्त्रों की प्राज्ञा के अनुसार जीवन-यापन करने वाले महापुरुषों-सज्जनों के द्वारा बारम्बार सूक्ति-सुधा के माध्यम से स्वीकृत, ऐसी श्री जिनेश्वर भगवान की मूत्तिप्रतिमा सत्स्वरूपिणी है। तथा राजा-महाराजाओं के द्वारा वन्दित होने के कारण, उनके मुकुटों की अलंकरणस्वरूपा भी है, किन्तु जिनके चित्त को अज्ञान रूपी अन्धकार ने आच्छादित कर रखा है, उनकी दृष्टि परमात्मा की परम पावन मूत्ति-प्रतिमा पर नहीं पड़ती है ॥३॥
येषामत्र सुजीवनं सुललितं, लब्धञ्च पुण्यैः पणैः, पूजालग्नमभूत् परैः सुखकरैर्भावैः स्वभावैः परम् । तेषां धन्यतमत्वतत्त्वमगमत्, संमन्यतां मानुजं, अज्ञानावृतचेतसां तनुजुषां, दृष्टिर्न तत्रेङ्गते ॥४॥
भावार्थ-पुण्य रूपी पैसों से प्राप्त किया हुआ जिनका जीवन परमात्मा की पूजा में सुखकारी स्वाभाविक भावों से समर्पित है, उनका जीवन धन्य है और मनुष्य-भव सफल है। जिनके चित्त को अज्ञान रूपी अन्धकार ने आच्छादित कर रखा है, उनकी दृष्टि परमात्मा की परम पावन मूत्ति-प्रतिमा पर नहीं पड़ती है ।।४।।
मूत्ति की सिद्धि एवं मूत्तिपूजा की प्राचीनता-२६४