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परिशिष्ट--३
5 नमामि सव्व-जिणाणं ॐ
है श्रीजिनप्रतिमाष्टकम्
(भावार्थयुक्तम्) hmmmmmmmmmmmmmoon (वीरः सर्वसुरासुरेन्द्रमहितं वीरं बुधाः संश्रिताः-इत्यनेन
रागरण गीयते)
(शार्दूलविक्रीडित-वृत्तम्) मूत्तिः स्फूत्तिमयी सदा सुखमयी, लालित्यलीलामयी, दिव्यानन्दमयी प्रतापतरणी, सद्भावशोभामयी । नित्यं सद्वचनामृतः सुललितः, सिद्धा च सिद्धान्ततः अज्ञानावृतचेतसां तनुजुषां, दृष्टिर्न तत्रेङ्गते ॥१॥ __भावार्थ-परमाराध्य देवाधिदेव श्री जिनेश्वर भगवान की स्फूर्तिमयी मूर्ति सदा सुखकारी ललित लीला युक्त, दिव्यानन्दमयी, सूर्य के समान तेजस्वी, सद्भावों की
मूत्ति की सिद्धि एवं मूत्तिपूजा की प्राचीनता-२६२