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का स्वरूप स्थिर किया गया, जिसके बीच में सत्य, ज्ञान और नैतिकता की ओर संकेत करने वाले 'धर्मचक्र' को स्थान दिया गया। इस प्रकार उसे वस्त्रमात्र से भिन्न प्रतीक रूप में मान्यता देकर 'राष्ट्र निशान' के रूप में मान्य किया गया।
यही इसका उत्तर है और इसी के साथ सामान्य 'पाषाण' और 'मूति' के वैशिष्टय का उत्तर भी सम्मिलित है। __ राष्ट्रध्वज जैसे राष्ट्र की स्वतन्त्रता का प्रतीक है, उसी प्रकार प्रतिमा समाज की दृढ़ आस्थाओं का प्रतीक है। मूत्ति के साथ मनुष्य की पवित्र भावनाओं का सनातन सम्बन्ध है। मूत्ति का दर्शन करने से मूत्ति में प्रतिष्ठा-प्राप्त देव का देवत्व, दर्शन करने वाले में संक्रमित होता है। ___ अपनी आत्मा में देवत्व की प्रतिष्ठा करना ही पूजा का उद्देश्य है । मूर्तिपूजा में यह विशेष स्मरणीय है कि मनुष्य अपने संस्कारों के उपयुक्त वातावरण को ढूंढता रहता है और वातावरण मिलने से उन भावनाओं और संस्कारों को ही बलवान करता है। वह नई-नई तस्वीरें देखने के लिए अनेक सिनेमाघरों में पैसे देकर
मूत्ति की सिद्धि एवं मूर्तिपूजा की प्राचीनता-२५४