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की भावना देने से देवत्व की प्रतिष्ठा होती है । इसलिए मन्दिर में स्थापित प्रतिमा और बाजार में बिकते तद्रूप खिलौनों में संस्कार- प्रभाव से कोई साम्य नहीं । मूर्ति को पवित्र मन्दिर की ऊँची वेदी पर बिराजमान कर अपने मन-मन्दिर में स्थापित करना ही उसकी सच्ची प्रतिष्ठा है ।
यदि पाषाण और मूर्ति में भेद नहीं मानोगे तो स्त्री, माता, भगिनी में भेद मानने का क्या आधार रहेगा ? क्योंकि - 'स्त्रीपर्याय से तो ये सब समान हैं' अपेक्षा और सम्बन्धव्यवच्छेद से ही इनमें व्यावहारिक भेद किया गया है | वही आत्मानुशासित, पूज्यत्व प्रतिष्ठान मूर्ति में किया गया है । हमारे भारतीय ध्वज में और दुकानों के उसी तिरंगे कपड़े में क्या अन्तर है ? वस्त्रजाति तो दोनों में एक ही है; परन्तु लाल किले पर राष्ट्रध्वज के रूप में तिरंगा ही क्यों लहराया जाता है ? क्योंकि २१ जुलाई, ४७ को पं. जवाहरलाल नेहरू के प्रस्ताव पर एक निश्चित आकार में भगवे, श्वेत और हरे तीन रंगों में क्रमश: निष्काम त्याग, पवित्रता और सत्यता तथा प्रकृति के प्रति स्नेह को प्रेरित करने वाले प्रतीकों में राष्ट्रध्वज
मूर्ति की सिद्धि एवं मूर्तिपूजा की प्राचीनता - २५३