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________________ [४] प्रश्न-इस अवसर्पिणी में प्रथम तीर्थंकर भगवन्त श्री ऋषभदेव-आदिनाथ हुए । उनके समय में श्री अजितनाथ आदि तेईस तीर्थंकरों के जीव संसार में चौरासी लाख जीवायोनी में परिभ्रमण कर रहे थे, तीर्थंकर रूप में नहीं थे तो भी उस समय उन सभी को वन्दन कैसे हो सकता है ? उत्तर-प्रथम तीर्थंकर श्री ऋषभदेव भगवन्त ने जिन जीवों को मोक्षगामी बताया है, वे सभी वन्दनीय एवं पूजनीय अवश्य ही हैं। ___ कारण कि श्री ऋषभदेव स्वामी के समय में श्री अजितनाथ आदि तेईस तीर्थंकरों के वन्दन का विषय द्रव्यनिक्षेप के आधीन है। द्रव्य के बिना न तो भाव हो सकता है, न तो स्थापना हो सकती है, या नाम कुछ भी नहीं हो सकता है। परमात्मा के 'विश्वस्तता' रूपी प्रबल कारण से ही प्रथम तीर्थंकर श्री ऋषभदेव के समय में भी बाद में होने वाले शेष श्री अजितनाथादि तेईस तीर्थंकर भी वन्दनीय थे। इसके सम्बन्ध में और समर्थन में श्री आवश्यकसूत्र के मूल पाठ में भी कहा है कि मूत्ति की सिद्धि एवं मूर्तिपूजा की प्राचीनता-२४३
SR No.002340
Book TitleMurti Ki Siddhi Evam Murti Pooja ki Prachinta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSushilsuri
PublisherSushilsuri Jain Gyanmandir
Publication Year1990
Total Pages348
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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