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________________ * श्री ठाणाङ्गसूत्र में भी दस प्रकार की स्थापना करने का उल्लेख है। उसका स्थापन कर 'पंचिदिय' सूत्र द्वारा उसमें प्राचार्य गुरु महाराज के गुणों का आरोपण करने के पश्चाद् उसके आगे धर्मक्रिया करना. योग्य है। * श्री समवायाङ्गसूत्र में बारहवें समवाय में भी गुरु-वन्दन के पच्चीस बोल पूर्ण करने का आदेश नीचे प्रमाण है दुवालसावत्ते कित्तिकम्मे पन्नते। तं जहादुरोणयं जहाजायं कित्तिकम्मं बारसावयं । चउसिरं तिगुत्तं, दुप्पवेसं एगनिक्खमणं ॥ १ ॥ इस सूत्रपाठ से सिद्ध होता है कि उसमें गुरुमहाराज की हद में दो बार प्रवेश करना तथा एक बार निकलना यह कथन साक्षात् गुरु के अभाव में गुरु को स्थापना बिना किस तरह सम्भव हो सकता है ? इसलिए जैसे साक्षात् जिन के अभाव में जिनमूर्ति की स्थापना करके धर्म क्रिया की जाती है, वैसे साक्षात् गुरु के अभाव में भी गुरु की स्थापना करके धर्मक्रिया की जाती है। इसमें सन्देह नहीं। मूर्ति की सिद्धि एवं मूर्तिपूजा की प्राचीनता-२४२
SR No.002340
Book TitleMurti Ki Siddhi Evam Murti Pooja ki Prachinta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSushilsuri
PublisherSushilsuri Jain Gyanmandir
Publication Year1990
Total Pages348
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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