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॥जिनमूत्ति वन्दन-पूजनादि समर्थक श्लोकादि ॥
पाताले यानि बिम्बानि,
यानि बिम्बानि भूतले। स्वर्गेऽपि यानि बिम्बानि,
तानि वन्दे निरन्तरम् ॥१॥ अर्थ-पाताललोक में रहे हुए, भूतल पर रहे हुए तथा स्वर्ग-देवलोक में रहे हुए सभी जिनबिम्बों को मैं निरन्तर वन्दन करता हूँ ।। १ ।। जिने भक्तिजिने भक्ति
जिने भक्तिदिने दिने । सदा मेऽस्तु सदा मेऽस्तु,
सदा मेऽस्तु भवे भवे ॥२॥ अर्थ-श्री जिनेश्वर देवों के प्रति भवोभव में सर्वदा के लिए नित्य प्रति मुझे भक्ति प्राप्त होवे ।। २ ।।
एन्द्रश्रेरिणनता प्रतापभवनं भव्याङ्गिनेत्रामृतं, सिद्धान्तोपनिषद्विचारचतुरैः प्रीत्या प्रमाणीकृता । मूत्ति स्फूतिमती सदा विजयते जैनेश्वरीन् विस्फुरमोहोन्मादघनप्रमादमदिरामत्तैरनालोकिता ॥३॥
मूत्ति की सिद्धि एवं मूर्तिपूजा की प्राचीनता-२२४