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शेर
राजा सिद्धार्थे मूर्ति पूजी, विभुवीर पिता जाण ए । अधिकार कल्पसूत्र में मेरी ज्योति से ज्योति मिलान
कहा है
शेर
भेजी मूर्ति जिनदेव की, मन्त्री अभयकुमारे ए । देखी श्रार्द्रकुमार पाये, बोधि-संयम-मोक्ष ए ॥ मेरे जन्मादि दुःख को दूर करो || मेरे ० ।। ( ६ )
शेर
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शेर
श्राद्ध अम्बड़ नृप श्रेणिक, राजा भक्ति करते जिनदेव की, पाये मेरी डूबत नैया को पार
श्रीभद्रबाहु ए ॥ करो || मेरे ० ।। ( ८ )
विजयदेव जिम पूजी, जिनमूर्ति मन रंगे ए । द्रव्य भाव दोय भेद से, जीवाभिगम भाखे ए ॥ मेरे मृत्यु के दुःख को दूर करो || मेरे० ॥ ( १० )
शेर -
जिनमूर्ति बिना वन्दु ना, इम कहे श्री आणंद ए । उपासकदशाङ्ग े जाणना, अनुपम अधिकार ए ॥ मेरे भव भ्रमरण को दूर करो || सेरे० ।। ( ११ )
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रावरण आदि ए । धर्म विवेक ए ॥ करो || मेरे ० || ( १२ )
मूर्ति की सिद्धि एवं मूर्तिपूजा की प्राचीनता - २०८