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-- शेर -- तेरी मूत्ति विश्व में ये, सबसे न्यारी श्रेष्ठ है। सुमन्त्र से ही मन्त्रित, प्राणप्रतिष्ठावन्त है। मेरी धर्म श्रद्धा में सुवृद्धि करो ॥ मेरे० ॥ (३)
___ -- शेर -- तेरी मूत्ति निविकारी, दोष-निर्मुक्त रम्य है। दर्शनीय, वन्दनीय, पूजनीय भी नित्य है। मेरी लक्ष चौरासी की पीर हरो ॥ मेरे० ॥ (४)
-- शेर -- जिनमूत्ति जिन सदृशी, भाखी जिन-सिद्धान्त में । पूजो सदा भक्ति भाव से, मत करो शङ्का उसमें । मेरा नूर मुझे बक्षीस करो ॥ मेरे० ॥ (५)
-- शेर -- सूर्याभदेवे मूत्ति पूजी, रायपसेरणी भाखे ए। पूजी मूत्ति द्रौपदी . ए, ज्ञातासूत्र दाखे ए॥ मेरा अज्ञान तिमिर दूर करो ॥ मेरे० ॥ (६)
-- शेर -- जंघाचारण मुनि वन्दे, जिनमूत्ति को भावे ए। तथा विद्याचारण वन्दे, कहा भगवतीसूत्रे ए॥ मेरा ज्ञान खजाना प्रगट करो ॥ मेरे० ॥ (७)
.. मूर्ति की सिद्धि एवं मूर्तिपूजा की प्राचीनता-२०७