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-- शेर -- आलोचना चैत्य साक्षी ए, कही व्यवहार सूत्र में । चैत्य अर्थ सेवा मुनि को, दाखी दसवें अङ्ग में ॥ मेरे सभी कर्मों का विनाश करो ॥ मेरे० ॥ (१३)
-- शेर --
मूर्ति नति फल ध्यान में, आवश्यके अधिकार हैं। जिनबिम्बाकारे मत्स्यादि, देख बोधि अन्य पाये हैं। मेरा मोक्ष में नित्य निवास करो ॥ मेरे० ॥ (१४)
-- शेर -- अर्हन स्वरूपे साकार तू, सिद्ध रूपे निराकार तू । शाश्वत रूपे सर्वदा तू, ज्ञान रूपे परिपूर्ण तू ॥ मुझे सिद्धों को साथ मिलान करो ।। मेरे० ॥ (१५)
- शेर - जग में प्रभो ! तेरी मूत्ति, शाश्वती-प्रशाश्वती भी हैं। पूजित तीन लोक में ये, स्वर्ग-मोक्ष सुखदायी हैं। मेरो सादि अनन्त स्थिति करो ॥ मेरे० ॥ (१६)
मूत्ति-१४ . मूर्ति की सिद्धि एवं मूत्तिपूजा की प्राचीनता-२०६