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जे जिनवर प्रतिमा न पूजे, नव दंडक ते जाशे ; सूत्र आधारे प्रतिमा पूजे, मुक्तितणां फल पाशे ।
मेरे० (२४) चार निक्षेपा ठाणांगे भाख्या, अनुजोग द्वार दिखावे ; एकने पावरे प्रवर ने छंडे, कुमति ने लाज न आवे ।
. मेरे० (२५) सुतो माणस शब्द शुजाणे, जागता कबू न जागे ; जाणतो जिनवचन उत्थापे, समकित दूर भागे ।
मेरे० (२६) इत्यादिक सूत्र पाठ सुणीने, कुमति दूर करीजे ; द्रव्यभावे प्रभुपूजा रचावे, नरभव लाहो लीजो ।
मेरे० (२७) पंचमे पारे साधु श्रावक ने, होय प्राधार सत्य जाणो; श्री जिन आगम जिनवर प्रतिमा, सद्दहणा खरी प्राणो।
मेरे० (२७) तपगच्छ दिनमणी सरिखा दीपे, श्री हर्षविजय गुरुराया; तस पद पंकज 'चंद्रविजय' गुरु, 'हितविजय' गुण गाया।
मेरे (२६०)
... मूति की सिद्धि एवं मूत्तिपूजा की प्राचीनता-२०५