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________________ ज्ञातासूत्र द्रौपदी पूजा करती शिवसुख मांगे. ; शक्रस्तवनो पाठ ज भरणती प्रभुगुण अनुभव रागे । मेरे० (१८) 1 भींतां चित्रनी नारी लेखी, त्यां मुनिने नवि रे' वो; दशवैकालिक ाठमा अध्ययने, ए न्याय प्रतिमा ले वो । मेरे ० (१६) सद्गुण आरणाधारक मुनिवर, जिनमारग सत्य भांखें ; वस्तुगते जे वस्तु प्रकाशे, कूड़ कपट नवि राखे । मेरे० (२०) निज पक्षपात में कुमति पड़िया, जिनप्रतिमा नवि माने; विधवा नारी गर्भने न्याये सूत्र पाठ राखे छाने । मेरे ० (२१) चक्षुदर्शनावरणी शुं कुमति, जिनप्रतिमा उग्यो प्रभाते रवि जलहलतो, घुबड़ तेज नवि देखे ; न पेखे । पोते मनमां कुमति जाणे, प्रतिमा सूत्रमां निज जननी डाकण जाणे, मुखशुं न कहे मेरे० (२२) बोली ; खोली । मेरे० (२३) मूर्ति की सिद्धि एवं मूर्तिपूजा की प्राचीनता - २०४
SR No.002340
Book TitleMurti Ki Siddhi Evam Murti Pooja ki Prachinta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSushilsuri
PublisherSushilsuri Jain Gyanmandir
Publication Year1990
Total Pages348
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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