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________________ गृहवासमा वसता जिनवर, जिनप्रतिमा नित्य पूजे ; छट्ट े अंगे मल्लि जिनेश्वर, एह अधिकारे सूजे । मेरे० (१२) जिनवर बिंब विना न पूजूं श्राणंदादिक सूत्र उपासक गणधर भाखे, नहि कोई एने तुरंगीया नगरी श्रावक बहुला, पंचमो अंग दिखावे; जिन प्रतिमानी पूजा करी, पछी गुरुवंदन ने जावे । मेरे ० (१४) बोले ; तोले । मेरे ० (१३) सूत्र समवायांग प्रावश्यक बोले, जल थल फूल लावे; समकित थापनाधारी श्रावक, प्रभुजीने फूल चढ़ावे | मेरे० (१५) फूलपूजा प्रतिमानी करतां, कुमति पाप कल्पों में देखो फूलनी पूजा, नागकेतु केवल पांच कोड़ी प्रभु फूलड़े पूजी, पाम्यो देश एकावतारी भावने पाम्यो, कुमारपाल बतावे; पावे | मेरे ० (१६) प्रढार ; भूपाल । मेरे० (१७) मूर्ति की सिद्धि एवं मूर्तिपूजा की प्राचीनता - २०३
SR No.002340
Book TitleMurti Ki Siddhi Evam Murti Pooja ki Prachinta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSushilsuri
PublisherSushilsuri Jain Gyanmandir
Publication Year1990
Total Pages348
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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