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इन्द्रादिक सर्व देव मलीने, स्वर्ग-विमाने देखो; जिनेश्वरनी दाढ़ा पूजे, जंबुपन्नत्ति में
देखो । मेरे ० (६)
सिद्धारथ राजा त्रिसला राणी, निर्मल समकितधारी; अष्ट द्रव्य शुं पूजा कीधी, कल्पसूत्र
अधिकारी । मेरे ० (७)
सम्प्रति राजा धर्मनो धौरी, त्रिखंड कीरति व्यापी ; सवा लाख जिनदेरां कराव्यां, सवाक्रोड़ बिम्ब स्थापी । मेरे ० (८)
अष्टापदगिरि भरत नरेश्वर, बिम्ब चौवीशी थापी ; श्रावश्यक सूत्र गरणधरे भाखी, तोही न माने पापी । मेरे० (६)
अभयकुमारे जिनप्रतिमा भेजी, प्रार्द्रकुमार बोध पायो; चारित्र लइने मुक्ति पाम्यो, सूयगडांग पाठ दिखायो । मेरे० (१०)
मनोमति शु कुमति बोले, ऊंधो प्रमुख बतावे ; साहुकार जनो नाम धरावे, सूत्र आधार दिखावे ।
मेरे० (११)
मूर्ति की सिद्धि एवं मूर्तिपूजा की प्राचीनता - २०२