SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 223
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पांचमे अंगे जिन प्रतिमानो, प्रकटपणे अधिकार । सूरियाभ सूर जिनवर पूज्या, रायपसेणी मझार रे ॥ विका० ॥६॥ दशमे अंगे अहिंसा दाखी, जिन पूजा जिनराज। एहवा आगम अरथ मरोड़ी, करिये केम अकाज रे ॥ भविका० ॥ ७ ॥ समकितधारी सतीय द्रौपदी, जिन पूजा मन रंगे । जो-जो अहनो अर्थ विचारी, छ? ज्ञाता अंग रे ॥ भविका० ॥८॥ विजयसुर जिम जिनवर पूजा, कीधी चित्त थिर राखी। द्रव्यभाव बिहूं भेदे कीना, जीवाभिगम छ साखी रे ॥ भविका० ॥६॥ इत्यादिक बहु प्रागम साखे, कोई शंका मत करजो। जिनप्रतिमा देखी नित नवलो, प्रेम घरगो चित्त घरजो रे।। भविका० ॥१०॥ चिन्तामणि प्रभु पारस पसाये, श्रद्धा होजो सवाई। श्री जिनलाभ सुगुरु उपदेशे, श्री जिनचन्द्र सवाई रे ॥ भविका० ॥११॥ 000 मूत्ति की सिद्धि एवं मूर्तिपूजा की प्राचीनता-२००
SR No.002340
Book TitleMurti Ki Siddhi Evam Murti Pooja ki Prachinta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSushilsuri
PublisherSushilsuri Jain Gyanmandir
Publication Year1990
Total Pages348
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy