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________________ श्री चिन्तामणि पाश्वनाथ जिनस्तवन भविका श्री जिनबिम्ब जुहारो, श्रातम परम श्राधारो रे । || भविका० ॥ जिन प्रतिमा जिन सारखी, न करो श्रागम वाणी ने अनुसारे, राखो प्रीति जे जिनबिंब स्वरूप न जाणे, ते भूला तेह प्रज्ञाने भरिया, नहीं शंका कांई । सवाई रे ॥ भविका० ॥ १ ॥ कहिये किम जाणे । तत्त्व पिछाणे रे ॥ भविका० ।। २ ।। अम्बड़ श्रावक श्रेणिक राजा, रावरण प्रमुख अनेक । विविध परे जिन भगति करंता, पाम्या धर्म विवेक रे ।। भविका० ।। ३ ।। जिन प्रतिमा बहु भगते जोता, होय निश्चय उपगार । परमारथ गुरण प्रगटे पूरण, जो-जो श्रार्द्र कुमार रे ॥ भविका० ॥ ४ ॥ जिन प्रतिमा प्राकारे जलचर, छे बहु जलधि मकार । ते देखी बहुधा मत्स्यादिक, पाम्या विरति प्रकार रे ॥ भविका० ।। ५ ।। : मूर्ति की सिद्धि एवं मूर्तिपूजा की प्राचीनता - १९६
SR No.002340
Book TitleMurti Ki Siddhi Evam Murti Pooja ki Prachinta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSushilsuri
PublisherSushilsuri Jain Gyanmandir
Publication Year1990
Total Pages348
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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