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________________ संवत् अगियार नवाणु वरसे, राजा कुमारपाल ; पाँच हजार प्रासाद कराव्यां, सात हजार बिम्ब थाप्यां, हो कुमति ! कां प्रतिमा उत्थापी ।। ५ ।। संवत् बार पंचाणु वरसे, वस्तुपाल तेजपाल ; पाँच हजार प्रासाद कराव्यां, अगीयार हजार बिम्ब थाप्यां, हो कुमति ! कां प्रतिमा उत्थापी ।। ६ ।। संवत् बार बोहोंतेर वरसे, संघवी धन्नो जेह ; राणकपुर जेणे देरां कराव्यां, कोड़ नवाणु द्रव्य खरच्यां, हो कुमति ! कां प्रतिमा उत्थापी ।। ७ ।। संवत् तेर एकोतेर वरसे, समरोशा रंग सेठ ; उद्धार पंदरमो शत्रुजे कीधो, अगियार लाख द्रव्य खरच्यां, हो कुमति ! कां प्रतिमा उत्थापी ॥ ८ ।। संवत् पंदर सत्तासी वरसे, बादरशाह ने वारे ; उद्धार सोलमो शेत्रुजे कीधो, करमशाहे जश लीधो, हो कुमति ! कां प्रतिमा उत्थापी ।। ६ ।। ए जिन प्रतिमा जिनवर सरखी, पूजे त्रिविध तुमे प्राणी; जिन प्रतिमामां संदेह न राखो, वाचक जसनी वाणी, हो कुमति ! कां प्रतिमा उत्थापी ।। १० ।। मूर्ति की सिद्धि एवं मूर्तिपूजा की प्राचीनता-१६२
SR No.002340
Book TitleMurti Ki Siddhi Evam Murti Pooja ki Prachinta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSushilsuri
PublisherSushilsuri Jain Gyanmandir
Publication Year1990
Total Pages348
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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