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________________ ॐ श्री जिनप्रतिमास्थापन-स्तवन [रचयिता-महामहोपाध्याय श्री यशविजयजी महाराज] जेम जिन प्रतिमा वन्दन दीसे, समकित ने अलावे ; अंगोपांग प्रकट अरथ ए, मूरख मनमा नावे रे, कुमति ! कां प्रतिमा उथापी ? ।। १ ।। एम तें शुभ मति कापी रे-कुमति ! कां प्रतिमा उथापी ? मारग लोपे पापी रे, कुमति ! कां प्रतिमा उथापी ? एह अरथ अखंड अधिकारे, जुप्रो उपांग उववाई ; ए समकितनो मारग मरडी, कहे दया शी भाई रे, - कुमति ! कां प्रतिमा उथापी ? ॥ २ ॥ समकित विण सुर दुरगति पामे, परस विरस आहारे ; जुअो जमाली दयाए ने तरीप्रो, हुरो बहुल संसारी, ___कुमति ! कां प्रतिमा उथापी ? ।। ३ ।। चारण मुनि जिन प्रतिमा वंदे, भाखिऊ भगवई अंगे ; चैत्य साखि पालोयण भाखे, व्यवहारे मन रंगे, कुमति ! कां प्रतिमा उथापी ? ॥ ४ ।। मूत्ति-१३. मूत्ति की सिद्धि एवं मूर्तिपूजा की प्राचीनता-१६३
SR No.002340
Book TitleMurti Ki Siddhi Evam Murti Pooja ki Prachinta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSushilsuri
PublisherSushilsuri Jain Gyanmandir
Publication Year1990
Total Pages348
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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