SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 214
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ॐ श्री जिनबिम्ब स्थापन-स्तवन ) (रचयिता-महामहोपाध्याय श्री यशोविजयजी महाराज) भरतादिके उद्धारज कीधो, शत्रुजय मोझार ; सोनातणां जेणे देरी कराव्यां, रत्नतणां बिम्ब थाप्यां , हो कुमति ! कां प्रतिमा उत्थापी ? ए जिनवचने थापी, हो कुमति ।। १ ।। वीर पछे बसे नेवु वरसे, सम्प्रति राय सुजाण ; सवा लाख प्रसाद कराव्यां, सवा क्रोड बिम्ब थाप्यां, हो कुमति ! कां प्रतिमा उत्थापी ॥२॥ द्रोपदी ए जिन प्रतिमा पूजी, सूत्रमा साख ठराणी; छठे अंगे ते वीरे भाख्यु, गणधर पूरे साखी , हो कुमति ! कां प्रतिमा उत्थापी ॥ ३ ॥ संवत् नवसेंताणु वरसे, विमल मंत्रीश्वर जेह ; आबु तणां जेणे दहेरां कराव्यां, बे हजार बिम्ब थाप्यां, हो कुमति ! कां प्रतिमा उत्थापी ॥ ४ ॥ मूत्ति की सिद्धि एवं मूर्तिपूजा की प्राचीनता-१६१
SR No.002340
Book TitleMurti Ki Siddhi Evam Murti Pooja ki Prachinta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSushilsuri
PublisherSushilsuri Jain Gyanmandir
Publication Year1990
Total Pages348
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy