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प्रभु ऋषभ चन्द्रानन वारिषेण , . वलि वर्द्धमानाभिधे चार श्रेण । एह शाश्वता बिम्ब सविचार नामे , नमो सासय जिनवरा मोक्षकामे ॥ १० ॥ सवि कोडी सय पनर बायाल धार , अट्ठावन लख सहस छत्रीश सार । एंशी जोइश वरण बिना सिद्धि धामे , नमो सासय जिनवरा मोक्षकामे ॥ ११ ॥ अशाश्वत जिनवर नमो प्रेमप्राणी , केम भाखिये तेह जारणी अजाणी। बहु तीर्थने ठामे बहु गाम गामे , नमो सासय जिनवरा मोक्षकामे ॥ १२ ॥
एम जिन प्रगमोजे, मोह नृपने दमीजे , भव भव न भमोजे, पाप सर्वे गमीजे । परभाव वमोजे, जो प्रभु अट्ठमीजे , 'पद्मविजय' नमीजे आत्म-तत्त्वे रमीजे ॥ १३ ॥
मूति की सिद्धि एवं मूर्तिपूजा की प्राचीनता-१६०