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चौराशी लाख तेम सत्ताणु सहस्सा , ऊपर वीश चैत्य शोभाये सरसा। ह बिम्ब संख्या कहुं तेह धामे , नमो सासय जिनवरा मोक्षकामे ॥५॥
सौ कोड़ी ने बावन कोड़ी जाणो , चोराणु लख सहस चौपाल प्राणो । सय सात ने साठ ऊपरे प्रकामे , नमो सासय जिनवरा मोक्षकामे ॥ ६ ॥
मेरु राजधानी गजदंत सार , जमक चित्र विचित्र कांचन बखार । इख्खुकार ने वर्षधर नाम ठामे , नमो सासय जिनवरा मोक्षकामे ॥ ७ ॥
वली दीर्घ वैताढय ने वृत्त जेह , जम्बू आदि वृक्षे दिशा गज छ तेह । कुण्ड महानदी द्रह प्रमुख चैत्य ग्रामे , नमो सासय जिनवरा मोक्षकामे ॥ ८ ॥
माणुषोत्तर नगवरे जेह चैत्य , नंदीसर रुचक कुडल छे पवित्त । तिर्थालोक मां चैत्य नमिये सुकामे , नमो सासय जिनवरा मोक्षकामे ॥ ६ ॥
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मूत्ति की सिद्धि एवं मूर्तिपूजा की प्राचीनता-१८६